Sardar Patel Ek Samarpit Jivan-Hindi (सरदार पटेल एक समर्पित जीवन)
About The Book
विशाल दृष्टि रखकर देखें तो स्वतंत्र भारत की स्थापना करके उसे सामर्थ्यवान बनाने में तीन व्यक्तियों का योगदान सबसे अधिक रहा-गांधी, नेहरू और पटेल। इस तथ्य को स्वीकार करते समय प्रायः गांधीजी का उल्लेख कर्तव्यनिर्वाह तक सीमित रहता है, नेहरू के संदर्भ में इसे पूर्णतः स्वीकार कर लिया जाता है, परन्तु सरदार को यह स्वीकृति अत्यन्त सीमित मात्रा में प्रदान की जाती है। जैसे कि भारत संघ के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने 13 मई, 1959 को अपनी डायरी में लिखा है, “आज जिस भारत के विषय में हम बात करते हैं और सोचते हैं, उसका श्रेय सरदार पटेल के राजनैतिक कौशल तथा सुदृढ़ प्रशासन को जाता है, फिर भी”, उन्होंने आगे लिखा है, “इस संदर्भ में हम उनकी उपेक्षा करते हैं।” आधुनिक भारत के एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सुपुत्र के जीवन पर डाला गया यह पर्दा उसके बाद के समय में भी कभी-कभी ही, और वह भी आंशिक तौर पर ही उठाया गया। मुझे इस पर्दे को सम्पूर्ण रूप से उठाने और सरदार पटेल के जीवन को आज की पीढ़ी के सामने लाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। सरदार की कथा एक पूर्ण मानव की कथा नहीं है। उनकी कमियों को छिपाने की मेरी इच्छा नहीं थी और मैंने ऐसा प्रयास भी नहीं किया है। मेरी आकांक्षा मात्र इतनी ही है कि सरदार पटेल के जीवन के विषय में जानने के बाद कम-से-कम कुछ लोग तो समझ पाएँगे कि अच्छे दिनों में अहोभाव के साथ तथा दुःख और निराशा के दिनों में भारत की महान् शक्ति के रूप में उन्हें याद किया जाना चाहिए। इस पर प्रायः वाद-विवाद होता रहता है कि स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के चयन के समय महात्मा गांधी ने सरदार पटेल के प्रति अन्याय किया था या नहीं किया था। इस संदर्भ में मैंने अपना शोध इस ग्रंथ में प्रस्तुत किया है। कुछ लोगों ने प्रतिपादित किया है कि इस विषय में महात्माजी ने सरदार के साथ अन्याय किया। इस पुस्तक के लेखन के प्रेरक तत्त्वों में से एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व यह प्रतिपादन भी है। यदि ऐसा अन्याय हुआ हो तो महात्मा के एक पौत्र के रूप में उसकी कुछ क्षतिपूर्ति कर लेना उचित होगा। इसके अतिरिक्त मैंने राष्ट्रनिर्माता के प्रति अपना नागरिक-ऋण चुकाने का प्रयास भी किया है। [प्रस्तावना में से] राज मोहन गांधी