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INR 20.00

INR 15.00

उर्दू साहित्य में मंटो ही सबसे ज्यादा बदनाम लेखक है। सबसे बड़ा गुनाह यह कि वह समय से पिचहत्तर साल पहले पैदा हुआ। साथ ही उसने समय से पहले मर कर हिसाब बराबर कर दिया। उस समय उसने जो कुछ लिखा, वह अगर आज लिखा होता तो उसकी एक भी कहानी पर अश्लीलता का मुकदमा नहीं चला होता। उसमें भरपूर आत्मविश्वास था। वो जो कुछ भी लिखता, जैसे सुप्रीम कोर्ट का आख़िरी फैसला। कोई चुनौती दे तो वो सुना देता। उसकी कहानियों में वेश्याओं के दलाल पात्रो के वर्णन के बारे में किसी ने मंटो से कहा—रंडियों के दलाल जैसे आप बनाते हैं, वैसे नहीं होते। मंटो ने तीक्ष्ण दृष्टि से देखते हुए कहा—वो दलाल खुशिया मैं हूँ! ...और यह जानकर हिंदी के प्रसिद्ध कथाकार देवेंद्र सत्यार्थी ने निःस्वास छोड़ते हुए कहा—काश में खुशिया होता...। मंटों की निजी पसंद-नापसंद अत्यंत तीव्र होती थी। मृत व्यक्ति की बस तारीफ ही की जानी चाहिए—मंटो एेसा नहीं मानता था। उसका एक विचार-प्रेरक कथन है—एेसी दुनिया, एेसे समाज पर में हज़ार-हज़ार लानत भेजता हूँ, जहाँ एेसी प्रथा है कि मरने के बाद हर व्यक्ति का चरित्र और उसका व्यक्तित्व लांड्री में भेजा जाए, जहाँ से धुलकर, साफ-सुथरा होकर वह बाहर आता हैं और उसे फरिश्तों की क़तार में खूंटी पर टांग दिया जाता है।

Author(s) : Vinod Bhatt

INR 150.00

INR 150.00

“જવાહરલાલની જીવનકથા નિત્યા વિકાસવંત જીવનના અસાધારણ વિકાસક્રમનો પોતાને મુખે કહેવાયેલો ઇતિહાસ છે. આ પુસ્તકમાં એ વિરલ વીરજીવનની કથા છે; યુવાવસ્થાથી જે વૈભવમાત્રને ફગાવી રણમાં ઝૂઝનાર, અનેક આઘાતોથી માથું લોહીયાળું થયા છતાં માથું અણનમ રાખનાર, બલ્કે માથું હાથમાં લઈને ઝૂઝનાર યોદ્ધાના જીવનની કથા છે.”


– મહાદેવ હરિભાઇ દેસાઇ

(ઉપોદ્ઘાતમાંથી)

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